धर्म डेस्क: खाटू श्याम जी और श्रीकृष्ण जी की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है, जिसमें भक्ति, त्याग और भगवान के प्रति प्रेम का अद्भुत संदेश मिलता है।
कहानी की शुरुआत
महाभारत युद्ध से पहले, पांडवों और कौरवों के बीच तनाव बढ़ चुका था। इस युद्ध में बहुत से वीर योद्धा शामिल होने वाले थे। गंधार देश के राजा भीष्मक के पुत्र बार्बरीक (गोपाल) एक महान योद्धा थे। वे अत्यंत पराक्रमी थे और उनके पास तीन अद्भुत बाण थे, जिन्हें “तीन बाण” कहा जाता था। इन बाणों के बल पर वे पूरे युद्ध को कुछ ही क्षणों में समाप्त कर सकते थे।
बार्बरीक बचपन से ही भगवान श्रीकृष्ण के भक्त थे। वे व्रत रखते, भजन गाते और सदैव सच्चाई का साथ देने का प्रण करते। युद्ध के समय, वे अपनी माता की अनुमति लेकर युद्ध देखने और उसमें भाग लेने के लिए निकले।
श्रीकृष्ण की परीक्षा
श्रीकृष्ण ने समझा कि बार्बरीक का युद्ध में शामिल होना परिस्थिति को पलट सकता है, क्योंकि वे जिस पक्ष का साथ देंगे, वही जीत जाएगा। कृष्ण ने एक साधु का वेश धारण कर बार्बरीक से पूछा – “तुम युद्ध में किसका साथ दोगे?”
बार्बरीक ने कहा – “मैं सदैव पराजित पक्ष का साथ दूँगा, क्योंकि यही मेरा व्रत है।”
कृष्ण ने सोचा, यदि ऐसा हुआ तो युद्ध कभी समाप्त नहीं होगा, क्योंकि जैसे ही एक पक्ष हारेगा, बार्बरीक उसका साथ दे देंगे, और दूसरा पक्ष हारने लगेगा। इससे न्याय और धर्म की स्थापना असंभव हो जाएगी।
बलिदान की मांग
कृष्ण ने बार्बरीक से उनके अद्भुत बाणों की शक्ति का प्रदर्शन करने को कहा। बार्बरीक ने एक बाण से चारों ओर के पेड़ों के सभी पत्तों को एक साथ छू लिया, यहाँ तक कि श्रीकृष्ण के पाँव के नीचे छिपा एक पत्ता भी। इससे कृष्ण को उनकी अद्वितीय शक्ति का अंदाज़ा हो गया।
तब कृष्ण ने उनसे कहा – “यदि तुम्हें धर्म की रक्षा करनी है, तो तुम्हें अपना शीश मुझे दान करना होगा।”
बार्बरीक ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपना सिर दान कर दिया। यह बलिदान उन्होंने धर्म और कृष्ण की आज्ञा के लिए किया।
खाटू श्याम जी के रूप में आशीर्वाद
श्रीकृष्ण बार्बरीक के इस त्याग से अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने वचन दिया – “कलयुग में तुम मेरे नाम श्याम से पूजे जाओगे, और जो भी सच्चे मन से तुम्हारा नाम लेगा, उसके दुख दूर होंगे।”
कृष्ण ने उनका सिर युद्ध समाप्त होने तक एक पहाड़ी पर स्थापित कर दिया, ताकि वे पूरा महाभारत युद्ध देख सकें।
कलयुग में बार्बरीक खाटू श्याम जी के रूप में अवतरित हुए और राजस्थान के सीकर जिले के खाटू नगर में उनकी पूजा होने लगी। यहाँ का मंदिर आज विश्वभर में प्रसिद्ध है और लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं।